राजस्थान के प्रमुख व्यक्तित्व | Rajasthan ke pramukh vyaktitv notes hindi PDF

 राजस्थान के प्रमुख व्यक्तित्व | Rajasthan ke pramukh vyaktitv NOTES HINDI PDF


राजस्थान के प्रमुख व्यक्तित्व/Rajasthan ke pramukh vyaktitv NOTES IN HINDI PDF


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राजस्थान के प्रमुख व्यक्तित्व

● विश्व में प्रत्येक कालखंड में ऐसे व्यक्तियों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने कार्यों से समाज को एक नई राह दिखाई है। 

● जिन्होंने अपने व्यक्तित्व तथा अपने कार्यों से समाज को ही नई राह नहीं दिखाई अपितु देश को भी नई राह दिखाने की कोशिश की और अपने राज्यों का अपने कुटुंब का अपने माता-पिता का नाम रोशन किया ।

● ऐसे ही कुछ व्यक्तियों का विवरण नीचे दिया जा रहा है जिन्होंने राजस्थान का नाम इस देश में ही नहीं बल्कि संसार में भी रोशन किया है ।

विजय सिंह पथिक :- 

बिजौलिया आंदोलन के  नेतृत्वकर्ता  विजय सिंह ‘पथिक’ का वास्तविक नाम भूपसिंह था।

● बिजौलिया आने से पूर्व वे एक क्रांतिकारी थे, वे रास बिहारी बोस के अनुयायी थे। 

रास बिहारी बोस ने देश व्यापी क्रान्ति के लिये उन्हें राजस्थान भेजा। 

● किन्तु क्रान्ति असफल होने के कारण वे पकड़े गये और टाटगढ़ की जेल में बंद कर दिये गये। 

● छूटने के बाद वे चितौड़ के ओछड़ी गाँव में बस गए। 

● उन्होंने ही बिजौलिया आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया। 

● कृषकों की समस्याओं का उन्होंने ‘प्रताप’ समाचार पत्र के माध्यम से अखिल भारतीय स्तर पर प्रचारित किया। 

1919 में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की और 1920 में उसे अजमेर स्थानान्तरित कर दिया। 

‘‘नवीन राजस्थान’’ समाचार पत्र का प्रकाशन भी अजमेर से शुरू हुआ। 

● 1922 में पथिक जी के प्रयासों से कृषकों व प्रशासन के बीच समझौता हुआ। 

● बिजौलिया का आंदोलन जब बेगूं में फैला तो पथिक जी ने वहां के आन्दोलन की भी बागडोर संभाली और उन्हें तीन साल के लिये कारावास की सजा दे दी गई। 

● कारावास से छूटने के बाद वे निर्वासित कर दिए गए।

● 1927 में जब बिजौलिया में माल भूमि छोड़ने का प्रश्न उठा तो पथिक जी ने कृषकों को भूमि छोड़ने की सलाह दी। 

● वे सम्भवतः बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों को भांप नहीं पाये। 

● भूमि जब्त होने पर किसानों का मनोबल टूटा। 

● पथिक जी के हाथों से नेतृत्व निकल कर अखिल भारतीय स्तर पर स्थानान्तरित हो गया। 

केसरी सिंह बारहठ :-

● केसरी सिंह बारहठ का जन्म 21 नवम्बर 1872 ई. को मेवाड़ राज्य की शाहपुरा रियासत के ठिकाना देवपुराखेड़ा में हुआ। 

● अपने पिता से उन्होंने विदेशी दासता के प्रति विरोध सीखा। 

● मेवाड़ के महाराणा के विश्वस्त बन कर उन्होंने श्यामकृष्ण वर्मा को 1893 ई. में मेवाड़ आमंत्रित किया। 

● यह कदम अंग्रेजों को सहन नहीं हुआ और मेवाड़ के पोलिटिकल एजेन्ट के कहने पर उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। 

● 1900 ई. में कोटा के महाराव के आग्रह पर वे कोटा आ गये और 1902 ई. से 1907 ई. तक कोटा राज्य में ‘सुपर इन्टेंडेंट ऐथिनोग्राफी’ पद पर कार्य करते रहे। 

● उनका संपर्क निरन्तर अर्जुनलाल सेठी व गोपाल सिंह खरवा से बना रहा और शीघ्र ही वे रासबिहारी बोस के विश्वासपात्र बन गये।

● राजस्थान में सशस्त्र क्रांतिकारी दल के संगठन का पूर्ण दायित्व केसरी सिंह पर आ गया। 

● उन्होने सशस्त्र क्रांति के लिये साधन जुटाने व लड़ाकू सैनिक जातियों को संगठित करने का कार्य आरंभ किया। 

● शीघ्र ही उनकी प्रतिष्ठा कवि, लेखक व राष्ट्र सेवक के रूप में फैल गई।

● 1903 ई. में जब महाराणा फतेहसिंह ने दिल्ली दरबार में जाने की स्वीकृति दी तो केसरी सिंह ने इस कृत्य की निंदा स्वरूप महाराणा को 13 सोरठ ‘चेतावनी री चूंगट्या’ भेजे जो उन्हें रेलमार्ग से जाते समय मिले। 

● इन्हें पढ़ कर महाराणा का मंतव्य बदल गया और दिल्ली पहुंचकर भी वे दरबार में सम्मिलित नहीं हुए। 

● इस घटना के बाद केसरी सिंह अंग्रेजों की आंख की किरकिरी बन गये। 

● सरकारी गोपनीय रिपोर्ट के अनुसार उनके सम्बंध रासबिहारी बोस, शचीन्द्रनाथ सान्याल, मास्टर अमीरचन्द, अवध बिहारी जैसे क्रान्तिकारियों के साथ बताए गए। 

● उन पर राजद्रोह,  ब्रिटिश फौज के भारतीय सैनिकों को शासन के विरूद्ध भड़काने व षड़यंत्र में सम्मिलित होने के साथ-साथ प्यारेराम नामक साधु की हत्या का आरोप भी लगाया गया। 

● उन्हें बीस वर्ष की सजा सुनाई गई और बिहार प्रान्त के हजारीबाग सेन्ट्रल जेल में रखा गया।

● 1920 ई. में बारहठ जी ने जेल छूटने के बाद उन्होंने राजपूताना के ए.जी.जी. को पत्र लिखकर राजपूताना व भारत की रियासतों में उत्तरदायी शासन पद्धति कायम करने की योजना प्रेषित की। 

● 1929 ई. के बाद बारहठजी के विचार अहिंसात्मक हो गए। 

● कांग्रेस के वर्धा अधिवेशन में वे आमंत्रित किये गये। 

● 1941 ई. में उनका स्वर्गवास हो गया।  

● केसरी सिंह बारहठ हिन्दी भाषा के पक्षधर थे। 

● उन्होंने क्षत्रिय जागीरदारों व उमरावों को परामर्श दिया कि वे मेयो कालेज के स्थान पर स्वदेशी शिक्षण संस्थाओं में अपने बच्चों को शिक्षा दिलायें। 

● 1904 ई. में उन्होंने क्षत्रिय कालेज की भी रूपरेखा बनाई किन्तु उसे समर्थन नहीं मिला।

● 1908 ई. में उन्होंने एक योजना द्वारा उच्च शिक्षा को प्रोत्साहन करने के लिए इंग्लैंड के स्थान पर छात्रों को जापान भेजना प्रस्तावित किया। 

● इस प्रकार स्वतंत्र प्रेम के साथ-साथ बारहठ जी ने मातृ भाषा व स्वदेशी शिक्षण संस्थाओं के प्रोत्साहन में भी कोई कसर नहीं रखी।

प्रतापसिंह बारहठ :-

● प्रतापसिंह अपने पिता केसरीसिंह बारहठ के पद्चिह्नों पर चलते हुए देश के लिए शहीद हो गए। 

● प्रारम्भिक शिक्षा अर्जुनलाल सेठी से ग्रहण करने के बाद व्यावहारिक शिक्षा के लिये मास्टर अमीरचंद के पास रहे। 

● राजपूताने की सैनिक छावनियों में भारतीय सैनिको को भविष्य में सशस्त्र क्रान्ति हेतु तैयार करना आरंभ किया। 

● 1912 ई. के दिल्ली कांड लार्ड हार्डिंग्स पर बम फैंके जाने के समय ये अपने चाचा जोरावर सिंह बारहठ के साथ मौजूद थे। 

● शचीन्द्रनाथ सान्याल, पिंगले व करतार सिंह सराबा जैसे प्रमुख क्रान्तिकारियों से इनका संपर्क हुआ। 

● उन्होंने भारत सरकार के गृह सदस्य रेगीनाल्ड क्रैडोफ की हत्या की योजना बनाई पर विफल रहे। 

● 1914-15 ई. में बनारस षड़यंत्र का आरोप तय किये जाने पर बरेली जेल में डाल दिए गए।

● कई प्रलोभनों के बावजूद इन्होंने पुलिस के सामने कोई भेद नहीं खोला। 

● अमानुषिक अत्याचारों व दारूण यातनाओं के फलस्वरूप इनकी 24 मई 1918 ई. में जेल में ही मृत्यु हो गई। 

● इनकी मृत्यु की सूचना कई वर्षों बाद उनके परिवारवालों को मिली। 


जोरावर सिंह बारहठ :-

● बारहठ परिवार के त्याग व बलिदान की कथा अतुलनीय है। 

● केसरी सिंह के छोटे भाई जोरावरसिंह बारहठ का परिचय दिये बिना राजस्थान के क्रांतिकारियों का विवरण पूरा नहीं हो सकता।

● 1912 ई. में दिल्ली में वाइसराय हार्डिंग्स् के जुलूस पर बम फैंकने का दुःसाहसिक कार्य जोरावर सिंह बारहठ का ही था। 

● दिल्ली से भागने पश्चात् वे अहमदाबाद, बांसवाड़ा, डूंगरपुर होते हुए मालवा के पहाड़ों व जंगलों में भटकते रहे। 

● आरा हत्याकांड में उनकी गिरफ्तारी के वारंट जारी हुए। 

● 1939 ई. में वारंट रद्द हुए थे। 

● उनका निधन 17 अक्टूबर 1939 ई. में कोटा में हुआ। 

● पं. ज्वाला प्रसाद, बाबा नृसिंहदास, स्वामी कुमारानंद जैसे क्रांतिकारियों का योगदान भी विस्मृत नहीं किया जा सकता है। 

पं. अर्जुन लाल सेठी :-

● 1880 ई. में जयपुर में जन्मे अर्जुनलाल सेठी प्रारंभिक काल में चैमू ठिकाने के कामदार नियुक्त हुए। 

● किन्तु देशभक्ति की भावना के कारण अपने पद से त्याग पत्र देकर उन्होंने 1906 ई. में जैन शिक्षा प्रचारक समिति की स्थापना की, जिसके तत्वाधान में जैन वर्धमान पाठशाला स्थापित की गई। 

● 1907 ई. में अजमेर में जैन शिक्षा सोसायटी की स्थापना की, जो 1908 ई. में जयपुर स्थानान्तरित कर दी गई। 

● अर्जुनलाल सेठी ने बंगाल के स्वदेशी आन्दोलन में भी सक्रिय भाग लिया व 1907 ई. की सूरत कांग्रेस में भी भाग लिया। 

● धीरे-धीरे वर्धमान विद्यालय क्रान्तिकारियों का प्रशिक्षण केन्द्र बन गया। 

● 12 दिसम्बर 1912 ई. को भारत के गर्वनर जनरल लार्ड हाॅर्डिंग्स के जुलूस पर बम फैंके जाने की घटना के पीछे रूपरेखा सेठी जी की ही थी। 

● इस घटना के मुख्य आरोपी जोरावर सिंह बारहठ सेठी के ही शिष्य थे। 

● 20 मार्च 1913 ई. के आरा हत्याकांड में भी सभी आरोपी सेठी जी के घनिष्ठ थे। 

● इस प्रकार राजपूताना की क्रान्तिकारी गतिविधियों के संचालक सेठी जी थे।

● तत्कालीन ए.जी.जी. सी. आर्मस्ट्रांग ने 1914 ई. में जयपुर सरकार को सेठी जी की गतिविधियों के बारे में सावधान किया।

● उनके जयपुर राज्य में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 

● काकोरी कांड के मुख्य आरोपी अशफाकउल्ला खां को सेठी जी ने ही राजस्थान में छुपाया। 

● लम्बे समय तक आरा हत्याकांड व दिल्ली षड़यंत्र के आरोप में वे नजरबंद रहे। 

● बंदी बनाकर उन्हें वैलूर (मद्रास प्रेसीडेंसी) भेजा गया, जहाॅं दुव्र्यवहार के कारण वे 70 दिन अनशन पर रहे। 

● जब 1919 ई. में वे रिहा हुए तो 1920 ई. की नागपुर कांग्रेस को सफल बनाने में जुट गये।

● इस प्रकार क्रान्तिकारी गतिविधियेां के बाद उन्होंने कांग्रेस की नीतियों को समर्थन देना आरम्भ किया। 

● असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण 1921 ई. में वे पुनः बंदी बनाये गये।

● 1930 ई. के सत्याग्रह आंदोलन में वे राजपूताना के प्रान्तीय डिक्टेटर नियुक्त किये गये व 1934 ई. में वे राजपूताना व मध्य भारतीय प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के प्रांतपति चुने गये। 

● नीति सम्बंधी मतभेदों के चलते उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। 

● सेठी जी अत्यन्त स्वाभिमानी व्यक्ति कुशल संचालक व ओजस्वी वक्ता थे। 

● जब उन्हें जयपुर के प्रधानमंत्री का पद प्रस्तावित किया गया तो उन्होंने कहा ‘‘श्रीमान् अर्जुनलाल नौकरी करेगा तो अंग्रेजों को कौन निकालेगा?’’ 

● अर्जुनलाल सेठी के राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब गांधीजी अजमेर आये तो स्वयं सेठी जी से मिलने उनके निवास स्थान पहुंचे। 

● कुशल वक्ता होने के अतिरिक्त उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखीं, जैसे शूद्र मुक्ति व स्त्री मुक्ति। एक नाटक ‘महेन्द्र कुमार’ भी लिखा व मंचित करवाया। 

● वे आजीवन सांप्रदायिक सद्भाव के लिये प्रयासरत रहे। 

● 22 सितम्बर 1941 ई. को अजमेर में उनका देहान्त हो गया। 


सागरमल गोपा :-

● जैसलमेर में जन-जागृति का श्रेय सर्वप्रथम सागरमल गोपा को जाता है। 

● 1940 ई. में उन्होंने जैसलमेर का गुण्डाराज नामक पुस्तक छपवाकर वितरित की। 

● इस पर दरबार (महारावल) द्वारा निवासित होकर वे नागपुर चले गऐ। 

● 1941 ई में पिता की मृत्यु पर जब गोपा जी जैसलमेर आये तो उन्हें 1942 ई. में छः वर्ष कठोर कारावास की सजा दी गई। 

● जेल में उन्होंने अमानवीय व्यवहार के बारे में जय नारायण व्यास को पत्र भेजे। 

● 3 अप्रैल 1942 ई. को गोपा जी के जेल में ही तेल डालकर जला कर मार डाला गया। 

● इस एक घटना ने जैसलमेर के जन-मानस को झकझोर डाला अैर निरकुंश शासन का विरोध तीव्र हो गया और अन्ततोगत्वा प्रजा मण्डल के नेतृत्व में आजादी का सूरज उदय हुआ। 

दामोदर दास राठी (1882-1918) :-

● राजस्थान के अग्रणी स्वतंत्रता प्रेमियों में दामोदर दास राठी का नाम लिया जाता हे। 

● ये उद्योगपति थे और राव गोपाल सिंह व अरविन्द घोष के सम्पर्क में रहे। 

● इन्होंने ब्यावर में आर्य समाज व होम रूल आंदोलन की शाखा खोली। 

● तिलक की उग्र नीति के ये प्रबल समर्थ थे।

स्वामी गोपाल दास (1882-1939) :-

● इन्होंने बीकानेर क्षेत्र के चुरू क्षेत्र में स्वतंत्रता की अलख जगाकर हितकारिणी सभा की स्थापना के साथ-साथ इन्होंने शिक्षा की प्रगति के लिए भी कार्य किये। 

● दूसरे गोलमेज सम्मेलन में जब बीकानेर के महाराजा के विरूद्ध अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् के कार्यकर्ताओं ने पर्चे बाटे तो स्वदेश लौटकर महाराजा ने सभी सावर्जनिक नेताओं को बिना मुकदमें चलाए बंदी बना दिए जिसमें स्वामी गोपाल दास भी सम्मिलित थे। 


राव गोपाल सिंह खरवा :-

● खरवा ठिकाने के ठाकुर राव गोपाल सिंह का जन्म 1872 ई. में हुआ। 

● ये आरंभ से ही आर्य समाज से प्रभावित थे।

● धर्म महामण्डल के शिष्टमण्डल के सदस्य के रूप में जब ये बंगाल गये तो उनका सम्पर्क क्रान्तिकारियों से हुआ। 

● 1907 में उन्होंने अजमेर में राजपूत छात्रावास खोला। 

● राव गोपाल सिंह का नाम दिल्ली षड़यंत्र केस में सामने आया। 

● उन पर यह भी आरोप लगाया कि वे जोधपुर व नसीराबाद के निचले स्तर के राजपूत सैनिकों के बीच ब्रिटिश विरोधी भावनायें फैला रहे हैं।

● दोनों ही कार्यवाहियों में उन पर कोई आरोप सिद्ध नहीं हो सका। 

● डिफेन्स Of इण्डिया एक्ट की धारा 3 के अन्तर्गत उन पर मुकदमा चलाया गया। 

● कोटा के साधु हत्याकांड में भी वे संदेह के घेरे में थे। 

● केसरी सिंह बारहठ के साथ मिलकर उन्होंने ‘वीर भारत सभा’ की स्थापना की। 

● प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रास बिहारी बोस ने सशस्त्र क्रान्ति की योजना बनाई, जिसमें खरवा को राजस्थान में क्रान्ति का कार्य सौंपा गया। किन्तु योजना विफल हो गई। 

● 24 जून 1915 ई. को इन्हें आदेशानुसार टाडगढ़ में जाकर रहना पड़ा। 

● 10 जुलाई 1915 ई. को वे भाग निकले।

● गिरफ्तार होने के पश्चात् उनकी जागीर खरवा छीन ली गई। 

● 1920 ई. में रिहा होने के बाद वे रचनात्मक कार्यों में संलग्न हो गये और 1956 ई. में इनका देहावसान हुआ। 

● इन प्रमुख क्रान्तिकारियों के अतिरिक्त कुछ और भी ऐसे महापुरूष थे जिन्होंने सशस्त्र क्रान्ति का प्रयास कर विदेशी सत्ता को उखाड़ फैंकने का प्रयत्न किया। 

श्याम जी कृष्ण वर्मा (1857-1930) :- 

● 1887 ई. से 1897 ई. के मध्य रतलाम, उदयपुर व जूनागढ़ राज्यों में दीवान पद पर रहे। ये स्वदेशी के प्रबल समर्थक थे। 

● 1897 ई. में महाराष्ट्र में रैण्ड (प्लेग कमिश्नर, पूना) की हत्या में ये संदेह के घेरे में आए। 

● यहां से बच कर इंग्लैण्ड पहुँचने पर इन्होने ‘इंडिया हाऊस’ व ‘होम रूल सोसाइटी’ की स्थापना की। 

● परदेश में रहते हुए इन्होंने भारत की आजादी के लिये महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

दामोदर दास राठी (1882-1918) :-

● राजस्थान के अग्रणी स्वतंत्रता प्रेमियों में दामोदर दास राठी का नाम लिया जाता है। 

● ये उद्योगपति थे और राव गोपाल सिंह व अरविन्द घोष के सम्पर्क में रहे। 

● इन्होंने ब्यावर में आर्य समाज व होम रूल आंदोलन की शाखा खोली व एक सनातन धर्म शिक्षा संस्था की स्थापना की। 

● तिलक की उग्र नीति के ये प्रबल समर्थक थे।

● इन सभी क्रान्तिकारी गतिविधियों की विशेष बात यह थी कि ये सामाजिक सुधार व शिक्षा के प्रचार के साथ समानान्तर रूप में चल रही थीं। राजनीतिक हत्याएँ, धन सामग्री जुटाने व प्रभाव बढ़ाने का माध्यम थी। 

● यद्यपि क्रान्तिकारियों का आन्दोलन जन साधारण में विशेष नहीं फैल पाया और गाँधीवादी साधन अधिक लोकप्रिय थे, फिर भी सामंती समाज की बदहाली, शासकों की उदासीनता व अंग्रेजों के दमन को उजागर करने में क्रांतिकारी सफल रहे। 

निहालचंद :- 

● किशनगढ़ चित्रकला शैली को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाने का श्रेय निहालचंद को ही है।

● यह किशनगढ़ के शासक सावंतसिंह के दरबार में थे । 

● इसने सावंतसिंह एवं उसकी प्रेमीका बनी-ठनी को राधाकृष्ण के रूप में चित्रित किया। 


बनी-ठनी का चित्र भारतीय 'मोनालिसा' कहा जाता है।


पन्नाधाय :-

● पन्ना मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की धाय माँ थी। 

● मेवाड़ के एक सामन्त बनवीर ने 1535 ई. में महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर युवराज उदयसिंह की हत्या का भी प्रयास किया। 

● पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन को उदयसिंह की जगह लिटाकर बनवीर की तलवार का शिकार होने दिया और उदयसिंह को किले से बाहर भेजकर उसकी प्राण रक्षा की।

● मेवाड़ के इतिहास में पन्नाधाय का त्याग एक अविस्मरणीय घटना है। 

गवरी बाई :- 

● डूंगरपुर के नागर ब्राह्मण परिवार में जन्मी कृष्ण भक्त कवयित्री गवरी बाई को 'वागड़ की मीरा' भी कहा जाता है।

● डूंगरपुर महारावल शिवसिंह ने गवरीबाई के लिए 1829 में बालमुकुन्द मंदिर का निर्माण करवाया। 

दुर्गादास राठौड़ :- 


● स्वामीभक्त वीर शिरोमणि दुर्गादास महाराजा जसवंत सिंह के मंत्री आसकरण के पुत्र थे। 

● इनका जन्म 13 अगस्त, 1638 को मारवाड़ के सालवा गाँव में हुआ। 

● ये जसवंतसिंह की सेना में रहे। 

● महाराजा की मृत्यु के बाद उनकी रानियों तथा खालसा हुए जोधपुर के उत्तराधिकारी अजीतसिंह की रक्षा के लिए मुगल सम्राट औरंगजेब से उसकी मृत्यु-पर्यन्त (1707 ई.) राठौड़-सिसोदिया संघ का निर्माण कर संघर्ष किया। 

● शहजादा अकबर को औरंगजेब के विरुद्ध सहायता दी तथा उसके पुत्र-पुत्री (बुलन्द अख्तर व सफीयतुनिस्सा) को इस्लोमोचित शिक्षा देकर मित्र धर्म निभाया एवं सहिष्णुता का परिचय दिया। 

● अंत में महाराजा अजीतसिंह से अनबन होने पर सकुटुम्ब मेवाड़ चले आये और

● अपने स्वावलम्बी होने का परिचय दिया।

● दुर्गादास की मृत्यु उज्जैन में 22 नवम्बर, 1718 में हुई। 

दुरसा आढ़ा :-

● अकबर के समकालीन दुरसा आढ़ा ने महाराणा प्रताप एवं राव चन्द्रसेन के देश-प्रेम की भावना का यशोगान किया है।

● विरुद्ध छहत्तरी (सर्वाधिक प्रसिद्ध), किरतार बावनी, वीरम देव सोलंकी रा दूहा आदि इनकी रचनाएँ हैं।

दयालदास :- 

● बीकानेर रै राठौडां री ख्यात के रचनाकार दयालदास का जन्म 1798 ई. में बीकानेर के कुड़ीया नामक गाँव में हुआ। 

● दयालदास री ख्यात की हस्तलिखित प्रति में राठौड़ों की उत्पत्ति से लेकर महाराजा सरदारसिंह के राज्यारोहण (1851 ई.) तक का इतिहास लिखा गया है। 

● यह ख्यात बीकानेर राजवंश का विस्तृत विवरण जानने, मुगल-मराठों के राठौड़ों से सम्बन्ध जानने, फरमान, निशान आदि के राजस्थानी में अनुवाद तथा बीकानेर की प्रशासनिक व्यवस्था को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण है। 

कविराज श्यामलदास :- 

● मेवाड़ के महाराणा शम्भूसिंह एवं उनके पुत्र महाराणा सज्जन सिंह के दरबारी कवि कविराज श्यामलदास का जन्म 1836 ई. में धोंकलिया (भीलवाड़ा) में हुआ। 

● मेवाड़ महाराणा शम्भूसिंह के आदेश पर इन्होंने मेवाड़ राज्य का इतिहास लिखना शुरू किया, जो वीर विनोद नामक ग्रन्थ में संकलित है। 

● ब्रिटिश भारत सरकार ने इनको केसर-ए-हिंद की उपाधि से तथा महाराणा मेवाड़ ने इनको कविराजा की उपाधि से विभूषित किया।

गौरीशंकर हीराचन्द ओझा :- 

● राजस्थान के इतिहासकार एवं पुरातत्ववेत्ता गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का जन्म 1863 ई. में रोहिड़ा (सिरोही) में हुआ था। 

● प्राचीन लिपि का अच्छा ज्ञान होने के कारण इन्होंने भारतीय प्राचीन लिपिमाला नामक ग्रंथ की रचना की। 

● अंग्रेजों ने इन्हें महामहोपाध्याय एवं रायबहादुर की उपाधि प्रदान की।

बीरबल सिंह :- 

● गंगानगर जिले के रायसिंहनगर में जन्मे बीरबल सिंह बीकानेर प्रजा-परिषद् के सदस्य थे। 

● वे सामंती अत्याचारों का विरोध करने एवं नागरिक अधिकारों की प्राप्ति के हर आन्दोलन में अगवा रहते थे। 

● प्रजा परिषद् ने 30 जून, 1946 को रायसिंह नगर में एक कार्यकर्ता सम्मेलन कर भावी रणनीति पर विचार किया। 

● 1 जुलाई, 1946 के दिन झण्डा अभिवादन के तहत् कार्यकर्ता हाथों में तिरंगे झण्डे लिए सम्मेलन स्थल पर पहुंचे। इसी बीच रेलवे स्टेशन पर कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और उन पर जुल्म की सूचना पाकर बीरबल सिंह के नेतृत्व में कार्यकर्ता हाथ में तिरंगा लिए स्टेशन की ओर बढ़ने लगे, जिससे घबरा कर सरकारी अधिकारी ने गोली चलवा दी। 

● इन्हीं में से एक गोली का शिकार बीरबल सिंह बना, लेकिन उसने तिरंगे को गिरने नहीं दिया। घायलावस्था में भी बीरबल सिंह के बोल फूट रहे थे 'झण्डा ऊँचा रहे हमारा-झण्डा ऊँचा रहे हमारा।' 

विजयदान देथा :- 

● 1 सितम्बर, 1926 को बोरूंदा (जोधपुर) में जन्मे विजयदान देथा की प्रसिद्ध कृतियाँ बातां री फुलवारी (लोक कथा, 1960), बापू के तीन हत्यारे (आलोचना, 1948), चौधरायन की चतुराई (लघु कहानी संग्रह, 1996), दुविधा और अलेखू हिटलर आदि हैं। 

● ये रूपायन संस्थान बोरूंदा के सह-संस्थापक भी हैं। 

● 'बिज्जी' उपनाम से प्रसिद्ध देथा को 1974 ई. में केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1992 ई. में भारतीय भाषा परिषद् पुरस्कार, 2002 ई. में बिहारी पुरस्कार, 2006 ई. में साहित्य चूडामणि पुरस्कार, 2007 ई. में पद्मश्री एवं 2012 ई. में राजस्थान रत्न से सम्मानित किया गया।

● उनकी एक लोककथा पर मणि कौल ने पहले दुविधा फिल्म बनाई, फिर इसी कथा पर अमोल पालेकर ने पहेली नामक फिल्म बनाई।

कन्हैयालाल सेठिया :- 

● लोकप्रिय गीत 'धरती धोरां री और अमर लोकप्रिय गीत 'पाथल और पीथल' के यशस्वी रचयिता साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितम्बर, 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ (चुरू) में हुआ।

अल्लाह जिलाई बाई :-

● 'केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारै देस... गीत प्रख्यात मांड गायिका अल्लाह जिलाई बाई के कंठों से निकलकर अमर हो गया। 

● इनका जन्म 1 फरवरी, 1902 को बीकानेर में हुआ। 

● मांड गायिकी में विशिष्ट योगदान के लिए सन् 1982 में इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 

● बाईजी को सन् 1983 में रॉयल अल्बर्ट हॉल में बी.बी.सी. लंदन द्वारा कोर्ट सिंगर का अवार्ड दिया गया।

गवरी देवी :- 

● मांड गायन शैली को देश-विदेश में ख्याति दिलाने वाली लोक गायिका गवरी देवी का जन्म 1920 ई. में जोधपुर में हुआ।

● संगीत इन्हें विरासत में मिला। 

● इनके माता-पिता दोनों बीकानेर दरबार की संगीत प्रतिभाएँ थी। 

● मास्को में आयोजित 'भारत महोत्सव' में गवरी देवी ने मांड गायकी से श्रोताओं को सम्मोहित कर प्रदेश का नाम रोशन किया। 

कम्पनी हवलदार मेजर पीरू सिंह :- 

● 20 मई, 1918 में रामपुरा बेरी (झुंझुनूं) में जन्मे मेजर पीरू सिंह 1936 ई. में 6 बटालियन राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए। 

● 18 जुलाई, 1948 को 6 राजपूताना राइफल्स के सी.एच.एम.पीरू सिंह को जम्मू कश्मीर के तिथवाल में शत्रुओं द्वारा अधिकृत एक पहाड़ी पर आक्रमण कर उस पर कब्जा करने का काम सौंपा गया।

● अपनी अंतिम सांस लेने से पहले उन्होंने दुश्मन के ठिकानों को नष्ट कर दिया। 

● इन्हें मरणोपरान्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। 

● परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले ये पहले राजस्थानी थे। 

मेजर शैतानसिंह :- 

● 'बाणासुर के शहीद' के नाम से प्रख्यात मेजर शैतानसिंह का जन्म 1 सितम्बर, 1924 को जोधपुर जिले की फलौदी तहसील के बाणासुर गाँव में हुआ।

● शैतानसिंह भारतीय सेना में भर्ती हो गए।

● 17 नवम्बर, 1962 को जब चीन ने लद्दाख क्षेत्र की चुशूल चौकी पर आक्रमण किया, उस समय इस चौकी की रक्षा की जिम्मेदारी मेजर शैतानसिंह की 'चारली कम्पनी' पर थी। 

● अपने 120 साथियों के साथ उन्होंने चीनी सेना को दो बार पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। 

● जब उनके पास केवल दो सैनिक शेष रह गए और वे स्वयं भी बुरी तरह घायल हो गए तो उन्होंने दोनों सैनिकों को पीछे चौकी पर सूचना देने के लिए भेज दिया और स्वयं अकेले ही गोलीबारी करते रहे। 

● अड़तीस वर्ष की आयु में 18 नवम्बर, 1962 को मातृभूमि के इस लाडले ने शत्रु से लड़ते हुए अपने प्राणों की कुर्बानी दे दी।

● मेजर शैतानसिंह को मरणोपरान्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

स्वामी केशवानन्द :- 

● शिक्षा संत के रूप में प्रसिद्ध स्वामी केशवानन्द का जन्म सीकर जिले के मंगलूणा गाँव में 1883 ई. में चौधरी ठाकरसी के घर हुआ। 

● इनके बचपन का नाम 'बीरमा' था।

● गाँधीजी से प्रभावित होकर इन्होंने 1921 ई. से 1931 ई. तक स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लिया और जेल यात्रा की।

● केशवानन्द ने 1932 ई. में संगरिया में जाट विद्यालय का संचालन सम्भाला और उसे मिडिल स्तर से महाविद्यालय स्तर तक पहुँचाया, जिसमें कला, कृषि, विज्ञान महाविद्यालय के अतिरिक्त शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, संग्रहालय एवं ग्रामोत्थान विद्यापीठ बनाया। 

● इन्होंने 1944 से 1956 ई. तक बीकानेर के रेगिस्तानी गाँवों में लगभग 300 पाठशालाएँ खुलवाई तथा अनेक स्थानों पर चलते-फिरते वाचनालय एवं पुस्तकालय स्थापित किये।

पं. झाबरमल शर्मा :- 

● 'पत्रकारिता के भीष्मपितामह' पं. झाबरमल शर्मा का जन्म जसरापुर में 1880 ई. में हुआ। 

● 1905 ई. में पं. दुर्गाप्रसाद मिश्र ने झाबरमल को हिन्दी पत्रकारिता और सम्पादन की शिक्षा दी। 

● इन्होंने अनेक पुस्तकों का सम्पादन किया, जिनमें - सीकर का इतिहास, खेतड़ी का इतिहास, खेतड़ी नरेश और विवेकानन्द, आदर्श नरेश, श्री अरविन्द चरित, हिन्दी गीता रहस्य सार, आत्म विज्ञान शिक्षा, तिलक गाथा, भारतीय गोधन आदि प्रमुख हैं। 

आचार्य तुलसी :-

● 'अणुव्रत आन्दोलन' के सूत्रधार आचार्य तुलसी का जन्म 20 अक्टूबर, 1914 को नागौर जिले के लाडनूं कस्बे में हुआ। 

● 22 वर्ष की आयु में वे तेरापंथ संघ के नवें आचार्य बनाए गए। 

● नैतिकता के उत्थान के लिए उन्होंने 1949 ई. में अणुव्रत आन्दोलन का सूत्रपात किया और इससे जनमानस को जोड़ने हेतु एक लाख किलोमीटर की पदयात्राएँ की।

● आचार्य तुलसी का संदेश है – “इन्सान पहले इन्सान, फिर हिन्दू या मुसलमान"।

कोमल कोठारी :-

● कोमल कोठारी का जन्म 4 मार्च, 1929 को चित्तौड़गढ़ जिले के कपासन कस्बे में हुआ। 

● इन्होंने लोक संस्कृति के उन्नयन में अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया। 

● इन्होंने 1960 ई. में जोधपुर जिले के बोरून्दा कस्बे में 'रूपायन' नामक संस्थान

की स्थापना की।

कृपालसिंह शेखावत :- 

● 'शिल्पगुरु' कृपालसिंह शेखावत का जन्म सीकर जिले के मऊ ग्राम में 1922 ई. में हुआ। 

● इन्होंने ब्लू पॉटरी पर चित्रांकनों के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय पहचान बनाई।

● 1974 ई. में इन्हें पद्मश्री' से भी सम्मानित किया गया।

जगजीत सिंह :- 

● 8 फरवरी, 1941 को श्रीगंगानगर कस्बे के एक सिक्ख परिवार में जन्मे गजल गायक जगजीत सिंह का 10 अक्टूबर 2011 को निधन हो गया। 

● इन्हें मरणोपरान्त राजस्थान सरकार ने 31 मार्च, 2012 को 'राजस्थान रत्न' पुरस्कार से नवाजने की घोषणा की।


पं. विश्वमोहन भट्ट :- 

● 12 जुलाई, 1950 को जयपुर में पं. विश्वमोहन भट्ट का जन्म हुआ। 

● 1965 ई. से इन्होंने देश-विदेश में संगीत प्रस्तुतियाँ देनी शुरू की। 

● 1994 ई. में इन्हें विख्यात ग्रेमी पुरस्कार मिला। 

● भट्ट ने गिटार में सितार, सरोद और वीणा के 14 अतिरिक्त तारों के सटीक और अद्भुत मुहावरों का समन्वय करके मोहनवीणा का आविष्कार किया।

कर्पूरचन्द कुलिश :- 

● 20 मार्च, 1926 को टोंक जिले के सोडा गाँव में कर्पूरचन्द कुलिश का जन्म हुआ।

● 1951 में कुलिश ने पत्रकार जीवन की शुरुआत की और 7 मार्च, 1956 को सांध्यकालीन दैनिक के रूप में राजस्थान पत्रिका की शुरुआत की। 

● आपातकाल (1975 ई.) के समय इन्होंने राजस्थान के गाँवों की यात्रा की और ग्रामीण जनजीवन व सामाजिक व्यवस्था पर 'मैं देखता चला गया' शृंखला लिखी जो राजस्थान के ग्रामीण परिवेश का प्रामाणिक दस्तावेज मानी जाती है। 

● कुलिश ने पोलमपोल नाम से ढूंढाड़ी में नियमित कॉलम लिखा जो उनकी साहित्यिक वसीयत मानी जाती है।

डॉ. पी. के. सेठी :- 

जयपुर फुट के जनक डॉ पी. के. सेठी ने सवाई मानसिंह चिकित्सालय में कार्यरत रामचन्द्र के सहयोग से 1969 ई. में दिव्यांगों के लिए नकली पैर (जयपुर फुट) विकसित किया। 

● इस कार्य के लिए इन्हें रैमन मैग्सेसे अवार्ड, डॉ. वी. सी. राय सम्मान, पद्मश्री सम्मान तथा रोटरी इंटरनेशनल अवार्ड फॉर वर्ल्ड अण्डर स्टेण्डिग एण्ड पीस पुरस्कार प्राप्त हुए।

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