प्रस्तावना Notes hindi PDF|भारतीय savidhan ki प्रस्तावना Notes in hindi|Preamble to Indian Constitution| Notes Hindi PDF

भारतीय संविधान की प्रस्तावना
Bhartiya savidhan  ki prastavana
Preamble to Indian Constitution


प्रस्तावना Notes in hindi|भारतीय savidhan  ki प्रस्तावना Notes in hindi|Preamble to Indian Constitution|



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संविधान की प्रस्थावना : -

संविधान की प्रस्तावना देश के सभी लोगों के लिए स्थिति और अवसरों की समानता प्रदान करती है। 

संविधान देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता प्रदान करने का प्रयास करता है।

संविधान की प्रस्तावना व्यक्ति और राष्ट्र की एकता और अखंडता की गरिमा को बनाये रखने के लिए लोगों के बीच भाईचारे को बढावा देती है।

भारत की प्रस्तावना को संविधान द्वारा तय की गयी कुछ सीमाओं के विषय में देश में कानून बनाने का अधिकार है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर सर्वाधिक प्रभाव उद्देश्य प्रस्ताव पर पङता है। 

● जिसे13 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा के समक्ष  पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रस्तुत किया। 

● तथा उद्देश्य प्रस्ताव पर 18 दिसम्बर 1946 तक संविधान सभा में चर्चा हुई और संविधान सभा ने 22 जनवरी 1947 को उद्देश्य प्रस्ताव को पारित कर दिया


प्रस्तावना की भाषा आष्ट्रेलिया के संविधान से ली गई।

प्रस्तावना:-

प्रस्तावना भारत की सम्प्रभुता (सर्वोच्य शक्ति) को सूचित करती है। भारतीय जनता को सम्प्रभुता का स्त्रोत मानती है।

नोट:- भारत में समप्रभुता का उपयोग राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है ।


प्रस्तावना में केवल एक बार42 वें संविधान संशोधन में 1976 मे द्वारा परिवर्तन किया गया है। तथा तीन नए शब्द जोङे गये है।

1.समाज वाद 2. पथ निरपेक्षता     3. अखण्डता

प्रस्तावना को ठाकुर दास भार्गव ने संविधान की आत्मा बताया है।


नोट:- डा. भीमराव अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को (संवैधानिक उपचार के अधिकारों को) संविधान की आत्मा बताया है ।

प्रस्तावना को संविधान की कुंजी भी कहा जाता है ।

● प्रस्तावना न्यायालय के समक्ष प्रवर्तनीय (वाद का विषय) नहीं है।

● 1960 ई. में उच्चतम न्यायालय ने इन री बेरूबारी यूनियन की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया कि प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं हैं

निति निर्देशक तत्वों के अतिरिक्त प्रस्तावना में भारत को लोक कल्याणकारी राज्य बनाने की बात कहीं गई हैं।

प्रस्तावना में शब्दों का क्रम निम्न प्रकार है :-

1 न्याय   2 स्वतंत्रता   3 समता  4 बंधुत्व

● नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प में जो आदर्श प्रस्तुत किया गया उन्हें ही संविधान की उद्देशिका में शामिल कर लिया गया. 

संविधान के 42वें संशोधन (1976) द्वारा संशोधित यह उद्देशिका कुछ इस तरह हैः


“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों कोः सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० “मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं.“


प्रस्तावना की मुख्य बाते :- 

(1) संविधान की प्रस्तावना को ’संविधान की कुंजी’ कहा जाता है

(2) प्रस्तावना के अनुसार संविधान के अधीन समस्त शक्तियों का केंद्रबिंदु अथवा स्त्रोत ’भारत के लोग’ ही हैं.

(3) प्रस्तावना में लिखित शब्द यथा: “हम भारत के लोग .......... इस संविधान को“ अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.“ भारतीय लोगों की सर्वोच्च संप्रभुता का उद्घोष करते हैं.

(4) प्रस्तावना को न्यायालय में प्रवर्तित नहीं किया जा सकता यह निर्णय यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मदन गोपाल, 1957 के निर्णय में घोषित किया गया.

(5) बेरुबाड़ी यूनियन वाद (1960) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जहां संविधान की भाषा संदिग्ध हो, वहां प्रस्तावना विविध निर्वाचन में सहायता करती है.

(6) बेरुबाड़ी वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं माना. इसलिए विधायिका प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती. परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के केशवानंद भारती बनाम केरल राज्यवाद, 1973 में कहा कि प्रस्तावन संविधान का अंग है. इसलिए विधायिका (संसद) उसमें संशोधन कर सकती है.

(7) केशवानंद भारती ने ही बाद में सर्वोच्च न्यायालय में मूल ढ़ाचा का सिंद्धांत दिया तथा प्रस्तावना को संविधान का मूल ढ़ाचा माना.

(8) संसद संविधान के मूल ढ़ाचे में नकारात्मक संशोधन नहीं कर सकती है, स्‍पष्‍टतः संसद वैसा संशोधन कर सकती है, जिससे मूल ढ़ाचे का विस्तार व मजबूतीकरण होता है,

(9) 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के द्वारा इसमें ’समाजवाद’, ’पंथनिरपेक्ष’ और ’राष्ट्र की अखंडता’ शब्द जोड़े गए.


प्रस्तावना मैं वर्णित मुख्य शब्दों की व्याख्या :-

स्वतंत्रता :- 

स्वतंत्रता का अभिप्राय व्यक्तिगत स्वतंत्रता से है।

समानता :- 

समानता का अर्थ समाज के किसी भी वर्ग के समान अधिकार से है।  

संविधान की प्रस्तावना देश के सभी लोगों के लिए स्थिति और अवसरों की समानता प्रदान करती है। 

संविधान देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता प्रदान करने का प्रयास करता है।

न्याय :- 

प्रस्तावना में न्याय शब्द को तीन रूपों में समाविष्ट किया गया है- आर्थिक न्याय,  सामाजिक न्याय ,और राजनीतिक न्याय। 

1. सामाजिक न्याय :- 

सामाजिक न्याय का अर्थ संविधान द्वारा  एक बराबर सामाजिक स्थिति के आधार पर एक अधिक न्यायसंगत समाज बनाने से है। 

2. आर्थिक न्याय :- 

आर्थिक न्याय का अर्थ समाज के अलग - अलग व्यक्तियों के बीच संपति के समान वितरण से है जिससे संपति कुछ एक हाथों में ही एकत्रित नहीं हो सके। 

3. राजनीतिक न्याय :- 

राजनीतिक न्याय का अर्थ सभी नागरिकों को राजनीतिक भागीदारी में बराबरी के अधिकार से है। 

भारतीय संविधान प्रत्येक वोट के लिए सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार और समान मूल्य प्रदान करता है।

संप्रभुता :-

सम्प्रुभता शब्द का अर्थ है - भारत किसी भी विदेशी और आंतरिक शक्ति के नियंत्रण से पूर्णतः मुक्त सम्प्रुभता सम्पन्न राष्ट्र है। 

भारत की प्रस्तावना को संविधान द्वारा तय की गयी कुछ सीमाओं के विषय में देश में कानून बनाने का अधिकार है।

समाजवादी :- 

'समाजवादी' शब्द संविधान के 42 वें संशोधन अधिनियम (1976 में) द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया।

समाजवाद का अर्थ -   समाजवादी की प्राप्ति लोकतांत्रिक तरीकों से होती है। 

● भारत ने 'लोकतांत्रिक समाजवाद' को अपनाया है।

लोकतांत्रिक समाजवाद एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास रखती है जहां निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्र आते हैं। 

● इसका असमानता को समाप्त करना है।

धर्मनिरपेक्ष :- 

'धर्मनिरपेक्ष' शब्द संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम (1976 में) द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। 

भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द का अर्थ है - भारत में सभी धर्मों को राज्यों से समानता, सुरक्षा और समर्थन पाने का अधिकार है। 

संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 25 से 28  में मौलिक अधिकार के रूप में धर्म की स्वतंत्रता का उल्लेख है।

लोकतांत्रिक :-

लोकतांत्रिक शब्द का अर्थ है -  संविधान की स्थापना एक सरकार के रूप में होती है जिसे चुनाव के माध्यम से लोगों द्वारा निर्वाचित होकर अधिकार प्राप्त होते हैं। 

प्रस्तावना इस बात की पुष्टि करती हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसका अर्थ है कि सर्वोच्च सत्ता लोगों के हाथ में है। 

लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र के लिए प्रस्तावना के रूप में प्रयोग किया जाता है।

● सरकार के जिम्मेदार प्रतिनिधि, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, एक वोट एक मूल्य, स्वतंत्र न्यायपालिका आदि भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएं हैं।

गणराज्य :- 

● एक गणराज्य में, राज्य का प्रमुख प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लोगों द्वारा चुना जाता है।

भारत के राष्ट्रपति को लोगों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। (संसद औऱ राज्य विधानसभाओं में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम)

● एक गणतंत्र में, राजनीतिक संप्रभुता लोगों के हाथों में निहित होती है।


भाईचारा :- 

भाईचारे का अर्थ एकता  की भावना से है।

संविधान की प्रस्तावना व्यक्ति और राष्ट्र की एकता और अखंडता की गरिमा को बनाये रखने के लिए लोगों के बीच भाईचारे को बढावा देती है।

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